मीथेन उत्सर्जन में 2030 तक 30 फीसदी कटौती करने को तैयार क्यों नहीं हुआ भारत? समझें इसके मायने

ग्लास्गो. क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस COP26 के दूसरे दिन दुनिया भर के देशों ने वैश्विक स्तर पर मीथेन गैस के उत्सर्जन को 30 प्रतिशत तक कम करने की प्रतिज्ञा ली. साथ ही 2030 तक जंगलों की कटाई रोकने और वनों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए भी एक और प्रतिज्ञा हुई. इन दो फैसलों ने ग्लास्गो में मंगलवार को दूसरे दिन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस को गतिमान बनाए रखा. बता दें कि कॉन्फ्रेंस के पहले दिन भारत ने फाइव प्वाइंट क्लाइमेट एजेंडा पेश किया था, जिसने सम्मेलन को पहले दिन आवश्यक गति प्रदान की थी. मीथेन एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है, जोकि कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के मुकाबले धरती को 80 गुना ज्यादा गर्म करने की क्षमता रखती है. बावजूद इसके कि मीथेन गैस वातावरण में बहुत कम समय तक रह पाती है.

हाइड्रोफ्लोरोकॉर्बन्स में कटौती करने और इसके उपयोग को कम करने पर सहमति जताई थी, इसका उपयोग एयरकंडीशनिंग, रेफ्रिजरेशन और फर्नीचर इंडस्ट्रीज में किया जाता है. अगर धरती को गर्म करने के पैमाने को देखें तो हाइड्रोफ्लोरोकॉर्बन मीथेन से भी ज्यादा खतरनाक होती है. हालांकि HFC के उपयोग और उत्सर्जन में कटौती का प्रस्ताव मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत हुआ था, लेकिन मंगलवार को ग्लास्गो में मीथेन का उत्सर्जन कम करने का फैसला औपचारिक समझौता नहीं है. वैश्विक स्तर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में मीथेन की हिस्सेदारी 17 फीसदी की है.

मीथेन में कटौती का प्रस्ताव कुछ देशों के समूह का है और ये क्लाइमेट समिट में शामिल हो रहे सभी देशों की ओर से लिया गया फैसला नहीं है. मीथेन में कटौती की जिम्मेदारी सिर्फ प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की होगी. इसी तरह 2030 तक वनों की कटाई रोकने और जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने का फैसला भी लिया गया है. इस प्रस्ताव पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किया है, लेकिन यह औपचारिक समझौता नहीं है. लेकिन इन फैसलों को जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में बड़ा और अहम कदम माना जा रहा है. अगर ये दोनों फैसले पूरी तरह लागू किए जाते हैं तो धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी को धीमा किया जा सकता है.

मीथेन के उत्सर्जन में 30 फीसदी की कटौती, खासतौर पर इस शताब्दी के मध्य तक धरती के तापमान में 0.2 डिग्री की बढ़ोत्तरी को कम कर सकती है. हालांकि भारत ने इन दोनों समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि मीथेन के उत्सर्जन के दो मुख्य स्त्रोत कृषि और पशुपालन है. ऐसे में भारत जैसे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए यह बहुत ही संवेदनशील मसला है. इसी तरह मीथेन के सबसे बड़े उत्पादकों रूस और चीन ने भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है. हालांकि चीन और रूस ने वनों की कटाई रोकने वाले प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया है.

ध्यान रखने बात ये है कि क्लाइमेट समिट में इस तरह के समझौते होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन पहले हुए समझौतों ने कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं दिए हैं. कम से कम जंगलों की कटाई रोकने से जुड़े समझौतों ने, पहले भी कई सारे प्रस्ताव और गठबंधन हुए हैं. हालांकि मीथेन के उत्सर्जन में कटौती का प्रस्ताव अपनी तरह का पहला है, जोकि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की अगुवाई में आगे बढ़ा है.

हालांकि भारत ने मंगलवार को ग्लासगो में सीओपी-26 जलवायु शिखर सम्मेलन में ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ (ओएसओडब्ल्यूओजी) का आह्वान किया, जिसका लक्ष्य जहां सूर्य की रोशनी है, वहां सौर ऊर्जा का दोहन करना और उस संचित ऊर्जा की आपूर्ति वहां करना, जहां उसकी सर्वाधिक जरुरत हो।’’ साथ ही भारत ने छोटे द्वीपीय देशों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े (IRIS) अभियान की भी शुरुआत की. इन दोनों अभियानों की शुरुआत की ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की उपस्थिति में हुई, जिन्होंने पिछले दो दिनों में कई मौकों पर पीएम मोदी के साथ मंच साझा किया. साथ ही कई अन्य वैश्विक नेता भी कार्यक्रम में मौजूद थे. ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ अभियान को दुनिया के 80 देशों का समर्थन मिला है.

लेकिन क्लाइमेट समिट सिर्फ यही नहीं हुआ है. कई अन्य देशों ने क्लाइमेट एक्शन प्लान के तहत कई अहम घोषणाएं की हैं. इसके तहत ब्राजील ने अपने नेट जीरो टारगेट को 2060 से घटाकर 2050 कर दिया है. चीन ने कहा है कि वह 2030 तक अपने यहां उत्सर्जन को कम करने के लिए विस्तृत प्लान साझा करेगा और 2060 तक नेट जीरो टारगेट हासिल करेगा. इजरायल ने भी 2050 तक नेट जीरो टारगेट हासिल करने का ऐलान किया है.

वहीं ब्रिटेन ने दुनिया के विकासशील देशों को आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है. इसके लिए बोरिस जॉनसन ने 3 बिलियन पाउंड के फंड का ऐलान किया है, जिसके जरिए विकाशशील देशों में ग्रीन इन्वेस्टमेंट को मदद दी जाएगी. अमेरिका ने खासतौर पर भारत के लिए 1 बिलियन डॉलर के फंड का फैलान किया है. इस फंड को ब्रिटेन-भारत ग्रीन गारंटी इनीशिएटिव के तहत दिया जाएगा.

हालांकि ये सब घोषणाएं विभिन्न देशों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर की गई हैं और अब राष्ट्राध्यक्ष दो दिन के बाद अपने देश वापस लौटने लगे हैं और बुधवार से वार्ताकार केंद्र में होंगे, जिनका मुख्य मकसद विभिन्न देशों के बीच मतभेद खत्म करना और पेरिस समझौते के तहत नए कॉर्बन मार्केट के लिए नियमों को बनाना है.

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