पत्रकारों के लिए अलग रास्ता नहीं बना सकते
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह नहीं चाहता कि देश में प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया जाए, लेकिन वह पत्रकारों के लिए अलग रास्ता भी नहीं बना सकता कि वह अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द करने के लिए सीधे शीर्ष अदालत आ जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक डिजिटल पोर्टल के तीन पत्रकारों को दो महीने के लिए उत्तर प्रदेश में दर्ज मुकदमों में गिरफ्तारी से संरक्षण देते हुए यह टिप्पणी की। तीनों पत्रकारों ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कुछ न्यूज रिपोर्ट पर यूपी के रामपुर, गाजियाबाद और बाराबंकी में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता पत्रकारों से कहा कि एफआईआर रद्द करने की गुहार के लिए उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करना होगा।
पीठ ने कहा, आप हाईकोर्ट जाएं और एफआईआर रद्द करने का आग्रह करें। हम आपको अंतरिम राहत देंगे। पीठ ने कहा, हम मौलिक अधिकारों के बारे में जानते हैं और नहीं चाहते कि प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटा जाए।
पीठ ने कहा, उनकी याचिका को अनुमति देने से ‘भानुमती का पिटारा’ खुल जाएगा। हम एफआईआर रद्द करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति नहीं दे सकते।