हर व्यक्ति के लिए निश्चित हो कर, मनमाना नहीं, कराधान व्यवस्था को सरल बनाने की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम की धारा-14ए से जुड़े एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को कराधान व्यवस्था (टैक्सेशन सिस्टम) को सरल और सुविधाजनक बनाने की सलाह दी। शीर्ष अदालत ने 18वीं सदी के प्रख्यात अर्थशास्त्री एडम स्मिथ का हवाला देते हुए कहा कि हर व्यक्ति के लिए चुकाया जाने वाला कर निश्चित होना चाहिए और यह मनमाना नहीं होना चाहिए। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कराधान व्यवस्था को सुविधाजनक और सरल बनाए रखने का प्रयास करे।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ विभिन्न बैंकों की तरफ से दायर उन अपीलों पर विचार कर रही थी, जिनमें आयकर अधिनियम की धारा-14 ए से संबंधित कर अधिकारियों के अधिकारों का मुद्दा उठाया गया था। पीठ ने अपने फैसले में कहा, यह देखने की जरूरत है कि कराधान व्यवस्था में अनुमान के लिए कोई जगह नहीं है। एक व्यक्ति या एक कॉरपोरेट को कर का भुगतान करना होता है और वह इसके लिए योजना तैयार करता है।
सरकार को कराधान नीति को सुविधाजनक और सरल रखने का प्रयास करना चाहिए। जिस तरह सरकार किसी व्यक्ति के कर देने से बचने को पसंद नहीं करती है। उसी तरह यह शासन की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी कर प्रणाली तैयार करे, जिसके लिए लोग अपनी सुविधा के हिसाब से बजट और योजना बना सके। यदि इन दोनों के बीच उचित संतुलन प्राप्त कर लिया जाता है तो राजस्व सृजन की प्रक्रिया से समझौता किए बिना अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है।
‘वेल्थ ऑफ नेशंस’ की टिप्पणी को दोहराया
पीठ ने इस दौरान 18वीं सदी के अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की किताब ‘वेल्थ ऑफ नेशंस’ की टिप्पणी को दोहराया। इसमें कहा गया है कि हर व्यक्ति के लिए चुकाया जाने वाला कर निश्चित होना चाहिए और यह मनमाना नहीं होना चाहिए। कर भुगतान का समय, भुगतान का तरीका और कितना भुगतान करना है, यह सबकुछ योगदानकर्ता और हर दूसरे व्यक्ति के लिए स्पष्ट होना चाहिए।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कर मुक्त बॉन्ड में में किए निवेश के लिए आयकर अधिनियम की धारा-14 ए के तहत ब्याज की आनुपातिक अस्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। सरकार जैसे किसी व्यक्ति के कर देने से बचने को पसंद नहीं करती है। उसी तरह शासन की भी जिम्मेदारी है कि वह ऐसी कर प्रणाली तैयार करे, जिससे करदाता अपना बजट और भविष्य की योजना तैयार कर सकें। अगर इन दोनों के बीच उचित संतुलन बना लिया जाए तो राजस्व जुटाने की प्रक्रिया से समझौता किए बिना अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है।
क्या है धारा-14ए
आयकर अधिनियम की धारा-14ए कुल आय में शामिल न होने वाली आय से जुड़े खर्च से संबंधित है। यह धारा आय के तहत कर देयता से बचने के लिए करदाता की तरफ से दिखाए ऐसे खर्च को अस्वीकार करने का प्रावधान करती है, जो उनकी कुल आय का हिस्सा नहीं है।